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प्राचीन समय की बात है। एक धनवान व्यापारी था। उसके पास अपार धन-दौलत, घर, गाड़ी-बैल, नौकर-चाकर सब कुछ था, परंतु उसकी कोई संतान नहीं थी। संतान सुख के लिए उसने बहुत से यज्ञ, हवन, दान और व्रत किए, परंतु उसे संतान की प्राप्ति नहीं हुई।
व्यापारी और उसकी पत्नी दोनों बहुत दुखी रहते। एक दिन व्यापारी यात्रा पर गया। रास्ते में उसे एक सुंदर शिव मंदिर दिखाई दिया। वहाँ कई भक्त सोमवार का व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा कर रहे थे। व्यापारी भी मंदिर में गया और पुजारी से सोमवार व्रत का महत्व पूछा।
पुजारी ने कहा—
“हे व्यापारी! सोमवार का व्रत रखने और भगवान शिव-पार्वती की पूजा करने से संतान, धन और मोक्ष सब कुछ मिलता है। यह व्रत अत्यंत फलदायी है। जो भी श्रद्धापूर्वक सोमवार का व्रत करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।”
व्यापारी ने उसी समय निश्चय किया कि वह और उसकी पत्नी मिलकर सोमवार का व्रत करेंगे।

व्रत का परिणाम
कुछ समय बाद भगवान शंकर और माता पार्वती उनकी भक्ति और श्रद्धा से प्रसन्न हुए। उन्होंने व्यापारी को वरदान दिया—
“तुझे एक तेजस्वी और गुणवान पुत्र की प्राप्ति होगी।”
कुछ समय में ही व्यापारी की पत्नी ने एक सुंदर और तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। व्यापारी का हर्ष का ठिकाना न रहा। पुत्र बड़े लाड़-प्यार से पला और धीरे-धीरे बड़ा होकर पढ़ाई-लिखाई में निपुण हो गया।
जब वह विवाह योग्य हुआ, तो व्यापारी ने उसका विवाह एक सुशील और सुंदर कन्या से कर दिया। विवाह के बाद दंपति भी सोमवार व्रत करने लगे।

कथा का उपसंहार
भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से उस परिवार के जीवन में कभी कोई कमी नहीं रही। धन, संतान, सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और दीर्घायु सब कुछ प्राप्त हुआ।
व्रत का फल
- सोमवार व्रत करने से अविवाहितों को मनचाहा वर मिलता है।
- दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है।
- संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- जीवन में दरिद्रता, रोग और संकट दूर होते हैं।
- अंत में भगवान शिव-पार्वती की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

